किसी भी महिला के जीवन का सबसे खूबसूरत और अनमोल पल होता है मां बनना। हर महिला इस पल की शुरुआत यानी प्रेग्नेंसी में अनेक अनछुए अनुभव को साक्षात महसूस करती है। खुद की परवाह से ज्यादा वह अपने गर्भ में पल रही नन्हीं जान की परवाह करती है, वह मां ही होती है जो खुद की जान खतरे में रखकर एक नई जिंदगी को जन्म देती है।
इसी कारण यह नितांत ही आवश्यक होता है कि एक महिला को इस दौरान स्वयं के और गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य के प्रति सजग रहते हुए कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, विटामिन, प्रोटीन युक्त आहार लेना चाहिए। प्रेग्नेंसी के दौरान हार्मोन्स में बदलाव के साथ कैल्शियम, प्रोटीन एवं विटामिन की समुचित मात्रा बहुत ही आवश्यक होती है। इस दौरान गर्भवती महिला को सामान्य से बढ़कर फोलिक एसिड और आयरन की आवश्यकता 15 प्रतिशत तक अधिक बढ़ जाती है।
फोलिक एसिड की पूर्ति के लिए गर्भवती को मौसमी, हरी पत्तेदार सब्जी, स्ट्रॉबेरी, सलाद को आहार के तौर पर ज्यादा से ज्यादा लेना चाहिए। फॉलिक एसिड डी एन ए में किसी भी तरह के परिवर्तन को रोकने में मददगार है, जिससे कैंसर जैसा भयानक रोग होने से बचा जा सकता है। यूं तो फॉलिक एसिड प्रेग्नेंसी से पहले भी महिलाओं के लिए अति आवश्यक तत्व है, क्योंकि इसका प्रयोग रक्त वृद्धि में सहायक है लेकिन गर्भवती स्त्री के लिए प्रेगनेंसी में फोलिक एसिड के महत्व और भी अधिक हो जाता है। इसकी कमी का दुष्प्रभाव न केवल प्रेग्नेंट स्त्री पर दिखाई देता है बल्कि गर्भस्थ शिशु/ नवजात शिशु पर भी इसकी कमी से विकार देखे जाते हैं।
फोलिक एसिड क्या है
फोलिक एसिड को विटामिन बी9, फोलासिन्न या फोलेट के रूप में भी जाना जाता है, यह शरीर में नई लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में भी मदद करता है। शरीर में फोलिक एसिड की कमी के कारण मेगलोब्लोस्टिक एनीमिया (लाल रक्त कोशिकाओं का जरूरत से ज्यादा बढ़ जाना) हो सकता है। फोलिक एसिड हमारे शरीर को स्वस्थ रखता है, बीमारियों से लड़ने की शक्ति देता है, शरीर में रक्त की आपूर्ति करता है, साथ ही साथ मानव शरीर की हड्डियों को मजबूत भी बनाता है
फोलिक एसिड के स्रोत
फोलिक एसिड हरी पत्तेदार सब्जियों, खट्टे फल और फलियों में पाया जाता है। अंकुरित दालों में भी फॉलिक एसिड तत्व भरपूर मात्रा में पाया जाता है, गर्भावस्था के दौरान महिला द्वारा अपना आहार सामान्य तीन बार की अपेक्षा चार बार मगर कम मात्रा में लिया जाना चाहिए।
फोलिक एसिड की कमी के लक्षण
हमारे शरीर में फोलिक एसिड की कमी के लक्षण विभिन्न रूप में दिखाई देने लगते हैं- वजन घटना, थकावट महसूस होना, चिड़चिड़ापन, सफेद बाल, डायरिया, कमजोरी इत्यादि।
प्रेग्नेंसी में फोलिक एसिड के फायदे
महिलाओं को प्रतिदिन लगभग 400 माइक्रोग्राम फोलिक एसिड लेने की जरूरत होती है, और जब बात प्रेग्नेंसी की हो तो प्रेग्नेंसी के दौरान पहली तिमाही के बाद यह मात्रा बढ़ सकती है, जिसे चिकत्सक के परामर्श के उपरांत लिया जाना आवश्यक है, अन्यथा प्रेग्नेंसी में फोलिक एसिड की कमी हो जाने से महिलाओं को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता है:
- गर्भ में पल रहे शिशु में जन्म दोष (शारीरिक विकलांगता, शारीरिक विकास में अवरोध, बोलने एवं सोचने समझने की क्षमता में कमी) उत्पन्न हो सकता है।
- फोलिक एसिड की कमी से रक्तालप्ता (एनीमिया अर्थात शरीर में खून की कमी) रोग हो सकता है।
- प्रेग्नेंसी के दौरान फोलिक एसिड की कमी के कारण वक्त से पहले प्रसव की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
- फोलिक एसिड की कमी के कारण नवजात शिशु कमजोर और साथ ही कम वजन का भी होने की संभावना होती है।
- प्रेग्नेंसी के दौरान फोलिक एसिड की पर्याप्त मात्रा न लेने से महिलाओं में मुंह के घाव की समस्या भी हो सकती है। उपरोक्त समस्याओं को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक होता है कि प्रेग्नेंसी के दौरान फोलिक एसिड को चिकित्सक के परामर्श अनुसार पर्याप्त मात्रा में लिया जाना चाहिए।
फोलिक एसिड की अधिकता से होने वाले नुकसान
किसी भी चीज का अधिक मात्रा में सेवन किया जाना हमें लाभ के स्थान पर नुकसान भी दे देता है…संतुलित मात्रा का ख्याल रखा जाना भी अति आवश्यक होता है, यही बात प्रेग्नेंसी से पहले और प्रेग्नेंसी के दौरान फोलिक एसिड का सेवन करते समय भी लागू होती है, यदि हम फोलिक एसिड का लाभ सोचकर उसकी मात्रा को संतुलित आहार में लेने का ध्यान न दें तो इसके अधिक सेवन से निम्नलिखित नुकसान भी उठाने पड़ सकते हैं:
- पेट की समस्या
- त्वचा सम्बन्धी समस्या
- एलर्जी
- लंग्स या प्रोस्टेट कैंसर
- हृदय सम्बन्धी रोग।
- सरदर्द
- स्ट्रोक की समस्या हो सकती है।
- अल्जाइमर की समस्या हो सकती है।
- फोलिक एसिड को सही मात्रा में सेवन करने से प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली परेशानी कम हो जाती है।
फोलिक एसिड का प्रेग्नेंसी में फायदे तो अनेकानेक हैं, लेकिन साथ ही इसका सेवन उपयुक्त रूप में किया जाना मां और शिशु दोनों को स्वस्थ एवं सुरक्षित रखता है। और शिशु दोनों को स्वस्थ एवं सुरक्षित रखता है।